इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

रूसी फौज अब “डालफिंस” को भी उतार दी है मैदान-ए-जंग में, ये ट्रेंड मछलियां पानी के भीतर दुश्मन को करती है आसानी से डिटेक्ट – सतीश उपाध्याय/अमरनाथ यादव


सेटेलाईट इमेज साभार-(अमेरिकी US नेवल इंस्टीयूट)

मॉस्को/वाशिंग्टन। जबसे रूस-यूक्रेन के बीच जंग छिड़ी है तभी से आये दिन तमाम ऐसे-ऐसे चौंकाने वाले दावे सामने आ रहे है कि सुनकर आपका माथा चकरा जायेगा,इसी कड़ी में एक ऐसा हीं दावा सामने आया है कि जिसमें बताया जा रहा है कि रूस ने अब डॉल्फिन मछलियों को भी युद्ध के मैदान में उतार दिया है। कहा जा रहा है कि रूसी फौज इन मछलियों को स्पेशल ट्रेनिंग देकर ब्लैक-सी के नेवल बेस की निगरानी करने के लिए तैनात किया है। बता दे कि यह खुलासा अमेरिका के यूएस नेवल इंस्टीट्यूट (USNI) ने सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए किया है।

दावा है कि रूसी नौसेना ने सेवस्तोपोल बंदरगाह के एंट्री गेट पर इन ट्रेंड डॉल्फिन्स मछलियों को रखा है। सेवस्तोपोल बंदरगाह क्रीमिया पेनिनसुला के दक्षिणी छोर पर है,जिस पर रूस ने वर्ष 2014 में हीं कब्जा कर लिया था। अमेरिकी USNI के सैटेलाइट इमेजरी के एनालिसिस के मुताबिक, फरवरी में यूक्रेन पर अटैक की शुरुआत में ही रूस ने अपने नेवल बेस पर डॉल्फिन्स की दो बटालियन्स को तैनात किया था।

बताया जा रहा है कि रूसी सेना द्वारा ट्रेंड की गईं ये डॉल्फिन्स रूसी नेवल बेस के एंट्री पॉइंट की निगरानी करती हैं। चूंकि इस पॉइंट से दुश्मन का कोई भी जहाज,पनडुब्बी या युद्धपोत रूस में आसानी से प्रवेश कर सकता है। वहीं यहां रूस की परमाणु पनडुब्बियां और जंगी जहाज हमेशा तैनात रहते हैं,इसलिए ऐसे में डॉल्फिन्स की तैनाती और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं।

रूस की इन डॉल्फिन्स के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि इन मछलियों की तैनाती रूस के लिए कोई नयी बात नहीं है,क्योंकि शीतयुद्ध के समय से ही रूस इन्हें स्पेशल ट्रेनिंग दे रहा है। चूंकि पानी के अंदर ये मछलियां दुश्मन के साउंड और रेंज को आसानी से डिटेक्ट कर सकती हैं। रूसी सेना ने ऐसी तकनीक विकसित की है,जिसकी मदद से डॉल्फिन्स की हरकतें सिग्नल में कन्वर्ट हो जाती हैं और सेना को पता चल जाता है।

वहीं एक अन्य रिपोर्ट्स में एक और खुलासा हुआ है कि डॉल्फिन्स को सिर्फ रूसी सेना तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अमेरिका और यूक्रेन जैसे देशों की सेना भी इन्हें ट्रेनिंग देती है। बताया जा रहा है कि वर्ष 2012 में यूक्रेन ने इस प्रोग्राम को बंद कर दिया था,जिसके बाद वर्ष 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के वक्त यूक्रेन की डॉल्फिन्स भी रूस के हाथ लग गई थीं। बाद में यूक्रेन ने कई बार रूस से अपनी डॉल्फिन्स वापस मांगीं,लेकिन उसे कामयाबी हासिल नहीं हुई।
वहीं अमेरिका भी डॉल्फिन्स को मिलिट्री ट्रेनिंग देने में पीछे नहीं है। सरकार ने डॉल्फिन्स और समुद्री घोड़ों को ट्रेनिंग देने के लिए अब तक करीब 28 मिलियन डॉलर खर्च किए हैं।

इस दौरान यह भी खुलासा हुआ है कि वर्ष 2018 में रिलीज हुई सैटेलाइट इमेजरी में ये खुलासा हुआ था कि रूस ने सीरियन वॉर के वक्त टर्तुस और सीरिया में बने अपने नेवल बेस पर डॉल्फिन्स का इस्तेमाल किया था। कोल्ड वॉर के समय भी अमेरिका और सोवियत संघ ने डॉल्फिन्स को ट्रेंड करने के लिए नई तकनीकें विकसित की थीं। बता दे कि डॉल्फिन्स के अलावा रूसी सेना बेलुगा व्हेल को भी ट्रेंड कर चुका है। जो कि वर्ष 2019 में नॉर्वे में देखी गई थी। तब वहां के मछुआरों ने बताया था कि साज (हार्नेस) पहनी और कैमरा लटकाई एक व्हेल उनकी नावों के साथ खींचतान कर रही थी।

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