सांकेतिक तस्वीर।
नई दिल्ली। फरवरी 2021 में जब भारत के पड़ोसी और सबसे अजीज मित्र देश म्यामांर में वहां की सेना ने चीन की सहमति से लोकशाही की हत्या करते हुए तख्तापलट की हरकत को अंजाम दी तो भारत के सामने वर्ष 1971 के दौरान आॅपरेशन “बांग्लादेश” की वह तस्वीर उभरकर सामने आई जब बांग्लादेश में पाक फौज के अत्याचारपूर्ण नीतियों से त्रस्त आकर लाखों बांग्लादेशी नागरिक हथियार उठाने के लिए मजबूर हो गए,जहां भारतीय सेना के हस्तक्षेप की वजह से पाक फौज घुटने के बल 93 हजार सैनिकों के साथ सरेंडर कर दी।
कमोबेस वहीं स्थिति भारत के सामने एक बार फिर आई,लेकिन इस बार भारत इस पूरे घटनाक्रम से खुद को तो दूर रखा हीं साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ में भी इस आर्मी रूल के खिलाफ अमेरिका द्वारा लाये गए विरोध प्रस्ताव में भी गैरहाजिर रहा। अब यहां भारत ऐसा क्यों किया ? यह समझ से बहुत दूर है। जबकि पूरी दुनिया जानती है कि म्यांमार में आर्मी रूल लागू है उसमें पूरा का पूरा सहयोग बीजिंग का है,इसके बावजूद भी भारत अपने इस पड़ोसी देश को नजरअंदाज कर रहा है।
ऐसे में हमारा मानना है कि म्यामांर संकट को नजरअंदाज करना भारत को बहुत भारी पड़ सकता है,क्योंकि चीन पिछले कई सालों से भारत के पड़ोसी देशों में पूरी तरह से हावी होने के मिशन पर लगातार सक्रिय है। बता दे कि चीन के इस मिशन का एकमात्र उद्देश्य भारत को पूरी तरह से घेरना है। इतना ही नहीं भारत के सभी रास्तों पर चीन कांटा बिछाने से कभी बाज नहीं आता, चाहे पाकिस्तानी आतंकियों को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित करने का मुद्दा हो,बरहमपुत्र नदी पर बांध बनाने का या भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी समूहों की मदद करना अथवा POK और जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ पूर्वी लद्दाख बार्डर पर समझोतों का लगातार उल्लंघन का मामला हो। इतना ही नहीं भारत के मिसाइल टेस्ट की जासूसी करने की नियत से श्रीलंका के बहाने हिंदमहासागर में अपने जासूसी जहाज को भेजना। यानि इससे भी बढ़कर और भी कई संवेदनशील मुद्दों पर चीन हमेशा भारत के खिलाफ हीं रहा है।
और बदले में भारत ऊईगर मुस्लिमों के मुद्दे पर,म्यामांर संकट और नेपाल में बीजिंग की बढ़ती सक्रियता के साथ-साथ श्रीलंका मुद्दे पर भी नई दिल्ली हमेशा चुप्पी साधकर बीजिंग को पूरी मदद कर रही है। मतलब भारत की यह नीति अत्यंत चिंताजनक और संवेदनहीनता से युक्त प्रतीत होती है। जबकि भारत की तीनों सेनाएं चीन के खिलाफ लगातार सक्रिय रहती है लेकिन भारत की डिप्लोमेसी चीन के प्रति जरूरत से ज्यादा उदार भाव रखती है जो कि भारत के सुरक्षा के लिहाज से बहुत ही खतरनाक है।
दरअसल,चीन नई दिल्ली के पड़ोसी देशों में पूरी तरह से हावी होकर इन देशों के साथ तमाम रक्षा समझौता करते हुए उन देशों में अपनी सैन्य गतिविधियों को अंजाम देने के लिए लगातार सक्रिय है। जो कि भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा है। बता दे कि दुनिया के जितने भी देश है वें अपने दुश्मन की ऐसी हरकतों को कतई नजरअंदाज नहीं करते हैं। ऐसे देश तुरंत हरकत में आ जाते हैं और इस तरह की गतिविधियों के खिलाफ फौरन सक्रिय हो जाते हैं,वह चाहे इजरायल, ईरान या रूस यानि कोई भी देश हो।
अब इतने से ही समझिये कि इस साल अगस्त में चीन का जासूसी जहाज युआन वांग 5 श्रीलंका के हंबनटोटा पर आकर रूका जब भारतीय नौसेना हरकत में आई तो पता चला कि दुश्मन का यह जहाज भारत के मिसाइल टेस्ट की जासूसी करने के लिए हिंदमहासागर में आ रहा है। जब भारत कोलंबो से अपना विरोध जताया तो श्रीलंका ने भारत को निराश कर दिया। वहीं नेपाल भी चीनी भाषा बोल रहा है। यानि मोटे शब्दो में बयां किया जाय तो चीन लगातार भारत के खिलाफ अपने सभी मिशन में सफल होता जा रहा है। अब ऐसे में भारत की मदद में अमेरिकी संगठन “क्वाड” बहुत अधिक सक्रिय नहीं दीख रहा है।
वहीं,भारतीय मीडिया का एक वर्ग भारत को POK और पाकिस्तान पर केंद्रित करता रहा है, जबकि भारत के सामने सबसे बड़ा खतरा चीन है, जिसे नई दिल्ली लगातार नजरअंदाज करने की कोशिश कर रही है। इस नजरअंदाज के पीछे यह साबित करने की भी कोशिश की जा रही है कि इसमें चीन हीं नहीं रूस भी शामिल हैं जो कि भारत का सबसे करीबी दोस्त है। लेकिन यहां भी गंभीरता से समझने की जरूरत है कि चीन के खिलाफ रूस कभी नहीं जा सकता,शायद यही बड़ी वजह थी कि 62 के जंग के दौरान रूसी मदद भारत को नहीं मिली जबकि अमेरिका भारत के साथ पूरी प्रतिबध्दता के साथ खड़ा रहा।
अब भारत,रूस के S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की वजह से यहां मौन धारण करें तो भी इसका बहुत मायने नहीं निकलता। फिलहाल,म्यामांर में चीनी सेना की बढ़ती गतिविधियां भारत के सुरक्षा के लिहाज से कितनी खतरनाक है ? बताने की जरूरत नहीं है। अब यही समझिये कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय विभिन्न उग्रवादी संगठनों का म्यामांर से इतना गहरा संबंध है कि ये संगठन भारत में विभिन्न आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के बाद म्यामांर में ही शरण लेते रहे है। अफसोस भारत इसे सिर्फ नजरअंदाज करने में हीं जुटा हुआ हैं जो कि भारत के हित में बिल्कुल भी ठीक नहीं है।
गौरतलब है कि म्यामांर में जारी आर्मी रूल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में जब अमेरिकी नेतृत्व में दुनिया के 119 देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया तो भारत, रूस और चीन समेत 36 देश इस प्रस्ताव पर मतदान के दौरान अनुपस्थित रहे। जबकि अब तक लाखों नागरिकों को म्यामांर आर्मी मार चुकी है। बता दे कि रूस और चीन म्यांमार की सेना के सबसे बड़े हथियार सप्लायर भी हैं।